Sunday 11 May, 2008

एक घर, जो हवा में तैरता है

जब वो घर था, तब दुनिया में कुछ नहीं था। न सड़कें थीं, न कारख़ाने, न चौराहे थे, न लोग। दुनिया में कोई हिमालय नहीं था, कोई समंदर भी नहीं. कोई आग नहीं थी, कोई पानी नहीं. तब कोई भाषा भी नहीं थी. सिर्फ़ दो लोग थे। उन दोनों ने रहने के लिए एक घर बनाया था, जिसकी दीवार हवा की थी। छत हवा की थी। फ़र्श भी हवा की। हवा की दीवार में से थोड़ी-सी हवा निकाल कर उन दोनों ने हवा की एक खिड़की बना दी थी। इसी तरह हवा का एक दरवाज़ा। उन दोनों के पास कोई भाषा भी नहीं थी। गूं-गूं करती कोई आवाज़ थी। वह आवाज़ भी एक घर ही थी, जिसमें वे दोनों वैसे ही रहते थे, जैसे बेदरो-दीवार के उस हवाघर में. वहां कभी घुटन नहीं होती थी. हर वक़्त हवा आती थी. जाती भी थी.

एक दिन भाषा बन गई। भाषा में सबसे पहले प्रार्थना ईजाद नहीं हुई थी। यह हमारी ग़लतफ़हमी है। भाषा में सबसे पहले नफ़रत और गाली ईजाद हुई। किसी विचारक ने कहा था कि भाषा में सबसे पहले प्रेम के लिए शब्‍द खोजा गया था. ग़लत था वह विचारक. प्रेम को भाषा की ज़रूरत थी ही नहीं.

तो भाषा में सबसे पहले गाली आई, जो साफ़ तौर पर एक स्‍त्री को दी गई थी। फिर दुनिया फलने-फूलने लगी। फिर समंदर बना। फिर हिमालय. फिर दर्रे. घाटियां. झाडियां और फूल. कांटे भी साथ-साथ ही बने. सड़कें बनीं. इमारतें भी. उनसे पहले थोड़ी सी आग भी बन गई थी. वह दो पत्‍थरों के बीच रहती थी और तभी दिखती थी, जब पत्‍थर आपस में लड़ पड़ें. फिर बहुत सारे लोग भी बन गए। वे पत्‍थरों की तरह कई बार लड़ पड़ते थे और आग पैदा करते थे।

वे दोनों चुप अपने हवाघर में रहते थे। किसी समय लोग आपस में पत्‍थरों की लड़ पड़े, जिससे आग पैदा हो गई। चिंगारियां उस हवाघर पर पड़ीं और वह जलने लगा। हवा की दीवार, हवा की खिड़की, हवा की छत, हवा की फ़र्श, सब जलने लगे। हवा का वह घर जल गया। हवा में ही बचा हुआ है अब। वे दोनों उसमें रहते थे, अब बेघर होकर भटकते हैं। न वह घर किसी को दिखता है, न उसमें रहने वाले वे दोनों। कहते हैं, हवा हो जाने का मतलब कभी दिखाई न पड़ना है।

पर मुझे अब भी अपने आसपास ही दिखता है हवा का वह घर। हवा जैसे वो दोनों रहने वाले। आंखों पर पानी का परदा चढ़ाकर देखें, तो शायद आपको भी दिख जाएंगे वे दोनों. और हवा में तैरता उनका एक घर. दिख रहे हैं न?

40 comments:

आलोक said...

तो आ ही गईं आप चिट्ठों की दुनिया में! कोई समस्या हो तो लिखिएगा।
शुक्रिया,
आलोक

सचिन श्रीवास्तव said...

बढिया. इस हवाघर का कोई मुहूर्त नहीं रहा होगा. ऐसा किसी विचारक ने कभी नहीं कहा. भारी सांस के साथ खींची गई इस हवादार पहली पोस्ट का इंतजार काफी समय से था. उम्मीद है जुबानदाराजी का वही अंदाज होगा जो वक्त वेवक्त आपके रंगीन दांतों से खिलखिलाहट की शक्ल में नुमायां होता है.. मेरी शुभकामनाएं ब्लॉगिंग में औपचारिक प्रवेश के लिए

Arun Aditya said...

खुशआमदीद। और इस धड़कती हुई भाषा के लिए बधाई।

Nandini said...

चिट्ठाजगत द्वारा प्राप्‍त चिट्टी के माध्‍यम से यहां पर आगमन हुआ । पहली ही पोस्ट है आपकी । किंतु अवश्‍य आप पहले से ही अच्‍छा लिखती होंगी । आपकी भाषा अभिनंदनीय है । एंव विचार अत्‍यंत नाज़ुक हैं । आप लिखती रहें । हम आते रहेंगे । टिपियाते रहेंगे ।
धन्‍यवाद,
नंदिनी

अनिल रघुराज said...

शायदा जी, इधर अपने में इतना गुम रहता हूं कि आप टिप्पणी नहीं करती तो शायद आपके इतने शानदार लेखन को पढ़ने से वंचित रह जाता। वाकई जबरदस्त सोच है आपकी और शब्दों और बिम्बों से उसे इतनी आसानी से आप कलमबंद भी कर देती हैं। आज ही अपने ब्लॉगरोल में आपको शामिल कर रहा हूं ताकि आपका लिखा पढ़ने से चूक न जाऊं।

Deep Jagdeep said...

खुशामदीद

Anonymous said...

खुश आमदीद
आप भी आखिर आ ही गई पाप की इस दुनिया में
कालिख का कक्ष है ये
संभलकर चलना आप

Batangad said...

अच्छे मुहूर्त में लिखा है। जबरदस्त विचार हैं। लिखती रहिए।

डॉ .अनुराग said...

आपके ख्यालो की अलग रवानगी है.....ओर उन्हें लगाम मी कसते हुए एक साथ दौडाने का कौशल भी.....अच्छा लगा आपको पढ़कर लिखती रहिये.....

अमिताभ मीत said...

खुशामदीद. मुहूर्त निकल ही आया आख़िर.

SHESH said...

बहुत खूबसूरत अभिव्‍यक्ति
आप का नाम शायदा की जगह शायरा होना चाहिए
क्‍या भाषा दी है आपको देवी सरस्‍वती ने
अब तो आपके हवाघर में बारंबार आना होगा
और लिख्रिए ज़ल्‍दी ही

गौरव सोलंकी said...

मुझे भी कई बार दिखती हैं हवा में तैरती हुई बहुत सी झोंपड़ियाँ...
कभी कभी पक्के घर भी..
आपको पढ़ता रहूंगा।

बोधिसत्व said...

स्वागत है.....जम कर लिखें....

विजय गौड़ said...

खूबसूरत गध्य़ के लिये बधाइ.

आभा said...

हवा हो जाना मतलब गुम हो जाना यदि उनके नाम लिख दिए जाए तो ...?
इस हवा पोस्ट ने गाना याद दिला दिया
हवाओं पे लिख दो हवाओं के नामsss

Udan Tashtari said...

स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

eSwami said...

:) .. खुशाअमदीद!

अनूप शुक्ल said...

स्वागत! दुनिया में सबसे पहली गाली स्त्री को दी गयी। ऐसा क्या?

Rajesh Roshan said...

इस पोस्ट की हवा को कोई हवा नही कर सकता. सबतक ना पहुचते हुए भी पहुच की पूरी संभावना है

Dr. Chandra Kumar Jain said...

प्रेम को भाषा की ज़रूरत थी ही नहीं.
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वे पत्‍थरों की तरह कई बार लड़ पड़ते थे और आग पैदा करते थे।
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पहली सोच की ज़रूरत आज पहले से ज़्यादा है.
और बाद वाली विडंबना तो आज क़दम-क़दम पर मौज़ूद है! है न ?
हवा पर इतना ज़मीनी आगाज़! कमाल है...!!

शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन

शायदा said...

बहुत आभारी हूं, आप सब इस ब्‍लॉग पर आए और पढ़कर हौसला बढ़ाया। गुज़ारिश इतनी ही है कि आते रहिएगा।

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब । आपकी आमद भी खुशगवार है । बनी रहिये। स्वागत है।

VIMAL VERMA said...

बहुत खूब...कितना तो अच्छा लिखतीं है आप...लिखती रहिये..हम आते रहेंगे....बिरादरी में शामिल होने पर हमारी बधाई स्वीकार करें...

कुमार आलोक said...

hawa ka kghar hawa ki khidkiyan ..kya bimb aur shabdon ka chayan hai ..ham bhee padhkar hawa hawai ho gaye

मनीषा पांडे said...

Bahut khub Shayada ji. Unicode hindi ki suvidha na hone ke karan romen me likh rahi hun.... Aapne bahut hi achcha likha hai...
Blog ki dunia me bahut-bahut swagat hai aapka...
Manisha Pandey http://www.bedakhalidiary.blogspot.com/

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह शायदा मैडम जी नमस्‍कार
मजा आ गया हवामहल पढकर कितने अच्‍छे ढंग से आपने हवा को हवा में लहराया है खैर आपकी लेखनी के तो कायल हम पहले ही थे बाकी अब एक बहुत अच्‍छा हवामहल पढने को मिला और लिखो हम पढना चाहते हैं। हवामहल में कहीं छोटा सा आशियाना हमें भी दे देना

azdak said...

खुशामदीद, भई, हमें भी आपके होने की ख़बर आपकी टिप्‍पणी से ही हुई. बड़ी सुघड़ ज़बान है आपकी. अच्‍छा और और अच्‍छा लिखती रहें. हमारी, बहुत सारी व प्‍यारी शुभकामनाएं.

मुनीश ( munish ) said...

There is a famous Italian film --Matilda . Is it among ur favourite ones? Welcome to Bloggers party!

Anonymous said...

Aapka aalekh para.bahut achcha likhne lagee hain.vah! Ab aapke likhe ko niymit parne ka mauke milega.

ravindra vyas said...

सुंदर, कल्पनाशील और मार्मिक। इतना अच्छा लिखकर अब आपने अपने लिए मानदंड बना लिए हैं। अगली बार आऊं तो निराश मत करिएगा।
रवींद्र व्यास

sanjay patel said...

क्या ख़ूब इब्तेदा की है आपने शायदा आपा.बस यूँ ही जारी रखें शब्दों का ये सुहाना सफ़र.हम सब के अच्छे सोच से ही तो दुनिया रहने लायक बन पाती है.दूर तक चलते रहिये...इंशाअल्लाह !

Suresh Gupta said...

आपके दोनों लेख पढ़े. कई बार पढ़ने पड़े. शायद एक दो बार और पढ़ने पड़ेंगे.

अगर भाषा में सबसे पहले नफ़रत और गाली ईजाद हुई तब क्या यह कहा जाए कि भाषा शैतान ने ईजाद की? खुदा ने तो प्रेम बनाया था और प्रेम में गाली नहीं समर्पण होता है. प्रेम की अपनी एक भाषा होती है. क्या नफरत के समावेश से प्रेम दूषित हुआ और शायद उसे तब एक बाहरी भाषा की जरूरत महसूस हुई? शायदा जी, निवेदन है इस पर कुछ प्रकाश डालें.

शायदा said...

आप सबका बहुत-बहुत शुक्रिया यहां आने का और पढ़कर हौसलाअफ़ज़ाई करने का। आते रहें आगे भी।
मुनीश जी ने मातील्‍दा के बारे में पूछा है और बहुत सारे दोस्‍तों के फोन भी आए, अगली पोस्‍टों में बताती हूं इसके बारे में।
आदरणीय गुप्‍ता जी, आपने जो सवाल उठाए हैं उनपर भी अगली पोस्‍टों में कुछ स्‍पष्‍ट करने की कोशिश करूंगी। आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

Ashish said...

बिना मिलावट की, सौ फ़ीसदी खालिस शायदा से मिलकर बहुत अच्छा लगा।

Unknown said...

सुंदर शब्द बहुत छोटा है...अपूर्ण भी...हवा में वो दोनो दिखने लगे हैं....

Jyoti said...

बहुत खूब !
हर शब्द इमानदार दिखता है।
हवा के घर में बड़ी ठोस घटनाओं की चर्चा है।
और हवा, हवा ही रहे इसलिए सब हल्का, हल्का है।
इंतज़ार रहेगा।

महेन said...

लोग कहते हैं जमकर लिखें मगर आप तो पिघलकर लिखती हैं और बेजा ही हमें भी पिघला रही हैं। वैसे यह हवाघर दोबारा खड़ा करने का कोई विचार हो तो हमें ज़रूर याद रखें। इसकी नीव में थोड़ी सी हवा हम भी भर देंगे।

Dr. Rajrani Sharma said...

Shayadaji bimb main khud bhi dubi hain aur dusaron ko bhi dubaya hai ----Badhaii

Anonymous said...

बहुत खूब लिखा है , एसा चित्रिण के हर नजारा आँखो में भर गया ।
घर बनता भी दिखा और जलता भी , फ़िर आँख में पानी आया तो... अगली पोस्ट कल पढे़गे ।

yayawar said...

today for the first time i am wading through MATEELDA. i don't really know the meaning of this term but of course can feel the phonetic vibrations. आगे फिर कभी...
बस ग़ालिब का एक शेर.......
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया